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रामगढ़: आउटसोर्सिंग कंपनियों के खिलाफ आंदोलन, रोजगार और वेतन संबंधी मुद्दों पर हुआ विरोध प्रदर्शन

Movement against outsourcing companies, protests on employment and salary related issues
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रामगढ़: सयाल ‘डी’ परियोजना अंतर्गत काम कर रही आउटसोर्सिंग कंपनियों के खिलाफ सेल संचालन समिति, सौंदा बस्ती के तत्वावधान में मंगलवार को स्थानीय ग्रामीणों ने काम ठप करा दिया। सुबह सात बजे से लेकर दोपहर 12 बजे तक कोयले का संप्रेषण पूरी तरह से बंद रहा। इस विरोध का मुख्य कारण ग्रामीणों को रोजगार से वंचित रखना और दिए गए वादों को पूरा न करना रहा।

ग्रामीणों को रोजगार से वंचित रखा गया

समिति के सदस्यों का कहना है कि कई बार आउटसोर्सिंग कंपनियों के साथ वार्ता के बाद भी ग्रामीणों को रोजगार नहीं दिया गया। जिन ग्रामीणों को पहले रोजगार मिला था, उन्हें एचपीसी रेट के अनुसार वेतन नहीं दिया जा रहा है, जिससे उनकी आजीविका पर संकट मंडरा रहा है।

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यातायात में हो रही परेशानी

इसके अलावा, वैकल्पिक सड़क जी की डायवर्जन का कार्य अभी तक प्रारंभ नहीं किया गया है। इससे स्थानीय लोगों को यातायात में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इस मुद्दे पर भी कई बार कंपनियों से वार्ता की गई थी, लेकिन इसका कोई समाधान नहीं निकला।

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महाप्रबंधक और समिति के बीच वार्ता

काम ठप होने के बाद, सीसीएल बरका-सयाल महाप्रबंधक अजय सिंह के कार्यालय में समिति के सदस्यों और महाप्रबंधक के बीच वार्ता हुई। महाप्रबंधक अजय सिंह ने सकारात्मक पहल का आश्वासन दिया, जिसके बाद समिति ने आंदोलन वापस ले लिया और काम फिर से शुरू कर दिया गया।

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प्रमुख लोग रहे शामिल

वार्ता में परियोजना पदाधिकारी सुबोध कुमार, समिति के संरक्षक गजानंद प्रसाद, अध्यक्ष नीतीश कुमार, सचिव अंबर कुमार, और पूर्व मुखिया दयानंद प्रसाद भी मौजूद थे। इसके साथ ही बंदी को सफल बनाने में ललन प्रसाद, राजदीप प्रसाद, रमेश मुंडा, बंधु करमाली, अरविंद प्रसाद, रंजन कुमार, साशिकांत गुप्ता, और अन्य ग्रामीणों ने अहम भूमिका निभाई।

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समिति का समर्थन जारी

आंदोलन समाप्त होने के बावजूद, समिति ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर उनके वादों को पूरा नहीं किया गया, तो वे फिर से आंदोलन करेंगे। ग्रामीणों की मांग है कि उन्हें रोजगार के साथ-साथ उचित वेतन दिया जाए और यातायात के लिए वैकल्पिक सड़क का निर्माण जल्द से जल्द किया जाए।

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यह आंदोलन स्थानीय समस्याओं और रोजगार के मुद्दों को उजागर करता है। समिति और ग्रामीणों का मानना है कि अगर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया जाता है, तो उन्हें मजबूरन आगे की कार्रवाई करनी पड़ेगी।

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